शीर्षक : अवतार धरो
सब पाप के बंधन टूट रहे ।
अब बांध सबर के छूट रहे ।
वसुधा पर फैला त्राहिमाम।
हे नाथ कसो इसकी लगाम।
धरती पर सख्त जरूरत है।
रावण हो गया कार्यरत है।
हे! राघवेंद्र कल्याण करो।
अवतार धरो अवतार धरो।।1।।
दानव फिर हो गए है सक्रिय।
प्रभु आकर करो इन्हें निष्क्रिय।
राहों पर द्यूत सभाएं हैं।
सहमी सहमी महिलाएं हैं।
रावण फिर वेश बदलता है।
नित नई सिया को हरता है।
हे! जगत नाथ उद्धार करो।
अवतार धरो अवतार धरो।।2।।
हर गली में फैला दंगा है।
दरबार नीच और नंगा है।
गलती पर चुप रह जातें है।
सब पितामह बन जातें है।
रक्षक ही भक्षक बन जाएं।
पनिहल सब तक्षक बन जाएं।
इससे पहले उपकार करो।
अवतार धरो अवतार धरो।।3।।
रुद्र प्रताप सिंह
©Rudra Pratap Singh
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