शीर्षक:-परछाई
कभी ये हंसाती,कभी रूलाती हैं,
इसका मन से अद्भुत मेल है।
उजाले में कला की बेजोड़ प्रतिभा,
परछाई का भी अजीब खेल है।।
कभी मन उदास होता है,
तो उजाला बेरंग सा लगता हैं।
किसी के आने की दस्तक,
छाया का रूप ले उमंग भरता है।
तब ऐसा लगता हैं मानों,
अपनों के आने की आहट है।
सच में वो चमत्कार ही है,
पर उसमें कुछ घबराहट भी है।
कुछ देर में मेरे अपने समक्ष आए,
ऐसा दृश्य प्रकृति का तालमेल है।
उजाले में कला की बेजोड़ प्रतिभा,
परछाई का भी अजीब खेल है।।
परछाई की आकृतियां अनेक है,
ये अजीबो गरीब दिखाई देती है।
इंसान का जीवन भी इनमें घिरा है,
ये जीवन की तस्वीर बयां करती हैं।
देह की छाया प्रतीत होती हैं ये,
पर आइना है ज़िंदगी का।
लुक्का छुपी करती है ये हम से,
पर उदाहरण है सादगी का।
सभी पर अधिकार जताती है,
इसका रिश्ता बड़ा घालमेल हैं।
उजाले में कला की बेजोड़ प्रतिभा,
परछाई का भी अजीब खेल है।।
©Satish Kumar Meena
#Shadow परछाई