ढूंढ़ लो खुद का घर बेघर हैं हम!!!
साथ कैसे रहोगे दर बदर हैं हम??
पी लोगे कहीं घूट के मर जाओगे,,,
हर किसी की नजर में जहर हैं हम!!!
हैं वो वीरान फिर भी चमकते हैं जो,,,
ऐसे रंगत भरे इक शहर हैं हम!!!
हमसे अदावत बगावत न करना कभी,,,
दुश्मनों के लिए बस कहर हैं हम!!!
जो किनारों पे जाकर के मिट जाते है,,,
वो समुन्दर के उठते लहर हैं हम!!!
खुद के सीनें पे सब कुछ उगाया मगर,,,
लोग कहते है फिर भी कि बंजर हैं हम!!!
"अर्पित" राह में अब न छोड़ेंगे कभी,,,
आखिरी मंजिल तक के रहगुजर हैं हम!!!
नवरत्न""अर्पित""
मुम्बई
17/08/2023
©Navratna Arpit
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