दीप जलता है सदन में, अंधेरा है व्याप्त मन में, चल | हिंदी कविता

"दीप जलता है सदन में, अंधेरा है व्याप्त मन में, चलाता है श्वास सबका, वही रक्षक है भुवन में, प्रेम और विश्वास से ही, प्रकट होते ईश क्षण में, कर रहे गुणगान सारे, धरा से लेकर गगन में, सिंधु से जलश्रोत लेता, वही भरता नीर घन में, जागता है साथ हरपल, साथ रहता है सयन में, हृदय में है व्याप्त गुंजन, बसा ले उसको नयन में, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra"

 दीप जलता है सदन में,
अंधेरा है व्याप्त मन में,

चलाता है श्वास सबका,
वही रक्षक  है  भुवन में,

प्रेम और विश्वास से ही,
प्रकट होते  ईश क्षण में,

कर रहे  गुणगान  सारे,
धरा से लेकर  गगन में,

सिंधु से जलश्रोत लेता,
वही भरता नीर घन में,

जागता है साथ हरपल,
साथ रहता है  सयन में,

हृदय में है व्याप्त गुंजन,
बसा ले उसको नयन में,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

दीप जलता है सदन में, अंधेरा है व्याप्त मन में, चलाता है श्वास सबका, वही रक्षक है भुवन में, प्रेम और विश्वास से ही, प्रकट होते ईश क्षण में, कर रहे गुणगान सारे, धरा से लेकर गगन में, सिंधु से जलश्रोत लेता, वही भरता नीर घन में, जागता है साथ हरपल, साथ रहता है सयन में, हृदय में है व्याप्त गुंजन, बसा ले उसको नयन में, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#दीप जलता है सदन में#

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