✍कमबख़्त कमियां बहुत है मुझमें
मेरा अंतर्मन इतना लाचारा है
कल चिलचिलाती धूप में भी,
ह्रदय के आगोश मे हो मन कटू,
वाणी कटू, वचन,क्यूं न रोस मे हो,
आज अब सामंजस्य की ऐसी सोच मे हो,
मेरा हँसना,मेरी बातों को भी,तानों से गवारा है।
ये तेरा दोष ना है,ये तो वक्त का,मुझको इसारा है।
दर बदल मंजिल नहीं, ये वक्त का तुमसे किनारा है।✍
ये तो ऐसा इसारा है,मै क्या समझूं,ये कैसा इसारा है।
जो वेवक्त शब्दों का, वक्त ने हम पर यूं तीर मारा है।
क्या ये वक्त का,हमसे किनारा है,जो अब ना हमारा है,
ऐसे आगोश मे थे,तनिक तुम ना होश में थे,
ये वक़्त का ही दोष है,ये नियंत्रण वक्त का है,
या शख्स है, ये पथ शौर्य का है,पथ गामिनी
सिरमौर का है या वो भी हमारा है।✍
मानवता की अभिव्यक्ति संयोग बन तू वक्त
वक्त अब कहता है,ये मेरे अंतर्मन का इसारा है,
अब जीवन जीने का केवल एक ही सहारा है
कमबख़्त कमियां बहुत है मुझमें✍
मेरा अंतर्मन इतना लाचारा है मेरा अंतर्मन इतना लाचारा है
©मेरी कलम के दो शब्द
#sad_shayari मेरा अंतर्मन लचारा है