हाथ धोकर ख्वाहिशों के पीछे पड़े हुए हैं ll आजकल | हिंदी कविता

""हाथ धोकर ख्वाहिशों के पीछे पड़े हुए हैं ll आजकल हम सुकून के आगे खड़े हुए हैं ll" सिर्फ मैं सही हूँ, बाकी सब गलत हैं, इसी बात को लेकर के झगड़े हुए हैं ll सुंदरता के पीछे भाग रहे हैं, आंखों का हाथ पकड़े हुऐ हैं ll चंचल कम, चालाक अधिक हैं, बच्चे समय से पहले बडे हुए हैं ll आबरू ढकी रहती थी कपडों से, आज चिथड़े-चिथड़े कपड़े हुए हैं ll चुभता तो है, मगर कीमती है, सच में हीरे मोती जडे हुए हैं ll" ©Kalpana_Shukla_UP_74"

 "हाथ धोकर ख्वाहिशों के पीछे पड़े हुए हैं ll
 आजकल हम सुकून के आगे खड़े हुए हैं ll"

 सिर्फ मैं सही हूँ, बाकी सब गलत हैं, 
 इसी बात को लेकर के झगड़े हुए हैं ll

 सुंदरता के पीछे भाग रहे हैं, 
 आंखों का हाथ पकड़े हुऐ हैं ll

 चंचल कम, चालाक अधिक हैं, 
 बच्चे समय से पहले बडे हुए हैं ll

 आबरू ढकी रहती थी कपडों से, 
 आज चिथड़े-चिथड़े कपड़े हुए हैं ll

 चुभता तो है, मगर कीमती है,  
 सच में हीरे मोती जडे हुए हैं ll"

©Kalpana_Shukla_UP_74

"हाथ धोकर ख्वाहिशों के पीछे पड़े हुए हैं ll आजकल हम सुकून के आगे खड़े हुए हैं ll" सिर्फ मैं सही हूँ, बाकी सब गलत हैं, इसी बात को लेकर के झगड़े हुए हैं ll सुंदरता के पीछे भाग रहे हैं, आंखों का हाथ पकड़े हुऐ हैं ll चंचल कम, चालाक अधिक हैं, बच्चे समय से पहले बडे हुए हैं ll आबरू ढकी रहती थी कपडों से, आज चिथड़े-चिथड़े कपड़े हुए हैं ll चुभता तो है, मगर कीमती है, सच में हीरे मोती जडे हुए हैं ll" ©Kalpana_Shukla_UP_74

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