इश्क कि जीत
तेरे बग़ैर अब आराम कैसे, मैं बता भी नहीं सकता,
अपनी हाल, और तुमसे पूछ भी नहीं सकता,
तेरे दिल - ए - हाल कैसे। ?
तेरे नाम के साथ अपना नाम लिख - लिख
मिटाया करता हूँ,
हर मिटायी हुई चीजों पे, ए धाग कैसे।?
मोहब्बत झूठी थी तो,
आज कल किसी से सवाल कैसे। ?
कैसा हूँ, कहाँ हूँ , किस हाल में हूँ
पूछते हो तुम, मुझे बताओ
नफ़रत भी करती हो, फिर मेरे बारे में
तेरे होंठों पर जिक्र कैसे ।?
कहती हो, उसे मैं देखना भी नहीं चाहता तो,
मेरे लिए ए ख्याल कैसे?
माना तुम जीत गयी, मैं हार गया, इश्क में
तो फ़िर तुम्हारी आँखों में ए आँसू कैसे?
©शायर विजय सर जी
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