.......क्या चीज़ है जिंदगी? °°°°°°°°&d

".......क्या चीज़ है जिंदगी? °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° प्यार के किस्से हैं और कुसूर है जिंदगी। हक़ीकतों से अपनी बहुत दूर है जिंदगी। धड़कनों के शय पर पलतीं हैं मेरी सांसें, देखे तो मौत के बहुत करीब है जिंदगी। बिखरे हुए ख्वाबों को समेटे हैं उम्र भर, लगता है कि कागज़ के फूल है जिंदगी। मोहब्बत व इनायत के शाइस्ता बसर हैं, फूलों में छिपे हुए तीखी शूल है जिंदगी। हालात के दरख्तों से फिसलती है रोज़, लम्हों के हाथ से बहुत मजबूर हैं जिंदगी। ज़र्रा ज़र्रा जिस्म मेरा यह मरता रहा यूहीं, जाने ये किस नशे में बहुत चूर है जिंदगी? बर्बादियों के जश्न पर रोता रहा इंसान, सौगात में मिली खुदा की नूर है जिंदगी। पाया है जो कुछ यहां लौटाना ही पड़ेगा, फिर भी किस बात पे मगरूर है जिंदगी? दौलत को पाकर आदमी गुमान में जीता, आए चले गए पर कुछ मशहूर है जिंदगी। कुछ दर्द हैं,आंसू हैं,खुशियों के कुछ पल, यहां कौन जान पाया क्या चीज़ जिंदगी? ×××××××××××××××××××××××××× ---राजेश कुमार गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) दिनांक:-24/12/2024 ©Rajesh Kumar"

 .......क्या चीज़ है जिंदगी?
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
प्यार के किस्से हैं और कुसूर है जिंदगी।
हक़ीकतों से अपनी बहुत दूर है जिंदगी।

धड़कनों के शय पर पलतीं हैं मेरी सांसें,
देखे तो मौत के बहुत करीब है जिंदगी।

बिखरे हुए ख्वाबों को समेटे हैं उम्र भर,
लगता है कि कागज़ के फूल है जिंदगी।

मोहब्बत व इनायत के शाइस्ता बसर हैं,
फूलों में छिपे हुए तीखी शूल है जिंदगी।

हालात के  दरख्तों से  फिसलती है रोज़,
लम्हों के हाथ से बहुत मजबूर हैं जिंदगी।

ज़र्रा ज़र्रा जिस्म मेरा यह मरता रहा यूहीं,
जाने ये किस नशे में बहुत चूर है जिंदगी?

बर्बादियों  के जश्न पर  रोता रहा  इंसान,
सौगात में मिली खुदा की नूर है जिंदगी।

पाया है जो कुछ यहां लौटाना ही पड़ेगा,
फिर भी किस बात पे मगरूर है जिंदगी?

दौलत को पाकर आदमी गुमान में जीता,
आए चले गए पर कुछ मशहूर है जिंदगी।

कुछ दर्द हैं,आंसू हैं,खुशियों के कुछ पल,
यहां कौन जान पाया क्या चीज़ जिंदगी?
××××××××××××××××××××××××××
---राजेश कुमार
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-24/12/2024

©Rajesh Kumar

.......क्या चीज़ है जिंदगी? °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° प्यार के किस्से हैं और कुसूर है जिंदगी। हक़ीकतों से अपनी बहुत दूर है जिंदगी। धड़कनों के शय पर पलतीं हैं मेरी सांसें, देखे तो मौत के बहुत करीब है जिंदगी। बिखरे हुए ख्वाबों को समेटे हैं उम्र भर, लगता है कि कागज़ के फूल है जिंदगी। मोहब्बत व इनायत के शाइस्ता बसर हैं, फूलों में छिपे हुए तीखी शूल है जिंदगी। हालात के दरख्तों से फिसलती है रोज़, लम्हों के हाथ से बहुत मजबूर हैं जिंदगी। ज़र्रा ज़र्रा जिस्म मेरा यह मरता रहा यूहीं, जाने ये किस नशे में बहुत चूर है जिंदगी? बर्बादियों के जश्न पर रोता रहा इंसान, सौगात में मिली खुदा की नूर है जिंदगी। पाया है जो कुछ यहां लौटाना ही पड़ेगा, फिर भी किस बात पे मगरूर है जिंदगी? दौलत को पाकर आदमी गुमान में जीता, आए चले गए पर कुछ मशहूर है जिंदगी। कुछ दर्द हैं,आंसू हैं,खुशियों के कुछ पल, यहां कौन जान पाया क्या चीज़ जिंदगी? ×××××××××××××××××××××××××× ---राजेश कुमार गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) दिनांक:-24/12/2024 ©Rajesh Kumar

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