पापा की छैयां
ना कोई है ना कोई होगा
पापा जैसा न कोई साया
बैठे रहते थे जिसकी छैयां
अब कहां कोई ऐसी छाया
कितने ही दिन बीत गए हैं
वो छैयां जैसे न सोए हैं
इधर उधर हैं भटक रहे
सुकून कहीं न पाएं हैं
काश लौट सकते फिर वो दिन
चलती फिर वही उंगली थामे।
पर चक्र ये उलटा नहीं चलेगा
वो समय कभी न फिर आयेगा
ले गए पापा जो अपने संग ही
वो सारा प्यारा बचपन फिर न आयेगा
हां आज भी है पास हमारे
अनगिनत यादों का पिटारा
बीत जाएंगे शेष ये दिन भी
पुनर्जन्म फिर है सहारा।
Dr Shaline Saxenaa
©Dr Shaline Saxenaa
#foryoupapa