पापा की छैयां ना कोई है ना कोई होगा पापा जैसा न को | हिंदी कविता

"पापा की छैयां ना कोई है ना कोई होगा पापा जैसा न कोई साया बैठे रहते थे जिसकी छैयां अब कहां कोई ऐसी छाया कितने ही दिन बीत गए हैं वो छैयां जैसे न सोए हैं इधर उधर हैं भटक रहे सुकून कहीं न पाएं हैं काश लौट सकते फिर वो दिन चलती फिर वही उंगली थामे। पर चक्र ये उलटा नहीं चलेगा वो समय कभी न फिर आयेगा ले गए पापा जो अपने संग ही वो सारा प्यारा बचपन फिर न आयेगा हां आज भी है पास हमारे अनगिनत यादों का पिटारा बीत जाएंगे शेष ये दिन भी पुनर्जन्म फिर है सहारा। Dr Shaline Saxenaa ©Dr Shaline Saxenaa"

 पापा की छैयां
ना कोई है ना कोई होगा
पापा जैसा न कोई साया
बैठे रहते थे जिसकी छैयां
अब कहां कोई ऐसी छाया
कितने ही दिन बीत गए हैं
वो छैयां जैसे न सोए हैं
इधर उधर हैं भटक रहे
सुकून कहीं न पाएं हैं
काश लौट सकते फिर वो दिन
चलती फिर वही उंगली थामे।
पर चक्र ये उलटा नहीं चलेगा
वो समय कभी न फिर आयेगा
ले गए पापा जो अपने संग ही
वो सारा प्यारा बचपन फिर न आयेगा
हां आज भी है पास हमारे
अनगिनत यादों का पिटारा
बीत जाएंगे शेष ये दिन भी 
पुनर्जन्म फिर है सहारा।
Dr Shaline Saxenaa

©Dr Shaline Saxenaa

पापा की छैयां ना कोई है ना कोई होगा पापा जैसा न कोई साया बैठे रहते थे जिसकी छैयां अब कहां कोई ऐसी छाया कितने ही दिन बीत गए हैं वो छैयां जैसे न सोए हैं इधर उधर हैं भटक रहे सुकून कहीं न पाएं हैं काश लौट सकते फिर वो दिन चलती फिर वही उंगली थामे। पर चक्र ये उलटा नहीं चलेगा वो समय कभी न फिर आयेगा ले गए पापा जो अपने संग ही वो सारा प्यारा बचपन फिर न आयेगा हां आज भी है पास हमारे अनगिनत यादों का पिटारा बीत जाएंगे शेष ये दिन भी पुनर्जन्म फिर है सहारा। Dr Shaline Saxenaa ©Dr Shaline Saxenaa

#foryoupapa

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