रखने लगा हूँ अब आलम-ए-फ़क़ीरी इन दुनियावी रिश्तों | हिंदी शायरी

"रखने लगा हूँ अब आलम-ए-फ़क़ीरी इन दुनियावी रिश्तों के व्यापार में शीरी सी लगती हैं ज़माने की तल्ख़ बातें कुछ तो बदला है ज़रूर मेरे क़िरदार में ©Kirbadh"

 रखने लगा हूँ अब आलम-ए-फ़क़ीरी 
इन दुनियावी रिश्तों के व्यापार में
शीरी सी लगती हैं ज़माने की तल्ख़ बातें
कुछ तो बदला है ज़रूर मेरे क़िरदार में

©Kirbadh

रखने लगा हूँ अब आलम-ए-फ़क़ीरी इन दुनियावी रिश्तों के व्यापार में शीरी सी लगती हैं ज़माने की तल्ख़ बातें कुछ तो बदला है ज़रूर मेरे क़िरदार में ©Kirbadh

#rain शायरी दर्द

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