ज़ख़्म भरते ही नहीं इस दिल के हालातों के, और बढ़ ज | हिंदी शायरी

"ज़ख़्म भरते ही नहीं इस दिल के हालातों के, और बढ़ जाता है दर्द, आराम हो जाने के बा'द। ख़्वाब टूटे हैं कई पलकों के दरवाज़े पे, कुछ नहीं बचता कोई अंज़ाम हो जाने के बा'द। रूह में जलती रहीं यादों की परछाइयाँ, और ख़ाली हो गया पैग़ाम हो जाने के बा'द। एक मंज़र है अधूरे चाँद सा दिल में कहीं, और गहरा हो गया अंधेरा तमाम हो जाने के बा'द। ©नवनीत ठाकुर"

 ज़ख़्म भरते ही नहीं इस दिल के हालातों के,
और बढ़ जाता है दर्द, आराम हो जाने के बा'द।

ख़्वाब टूटे हैं कई पलकों के दरवाज़े पे,
कुछ नहीं बचता कोई अंज़ाम हो जाने के बा'द।

रूह में जलती रहीं यादों की परछाइयाँ,
और ख़ाली हो गया पैग़ाम हो जाने के बा'द।

एक मंज़र है अधूरे चाँद सा दिल में कहीं,
और गहरा हो गया अंधेरा तमाम हो जाने के बा'द।

©नवनीत ठाकुर

ज़ख़्म भरते ही नहीं इस दिल के हालातों के, और बढ़ जाता है दर्द, आराम हो जाने के बा'द। ख़्वाब टूटे हैं कई पलकों के दरवाज़े पे, कुछ नहीं बचता कोई अंज़ाम हो जाने के बा'द। रूह में जलती रहीं यादों की परछाइयाँ, और ख़ाली हो गया पैग़ाम हो जाने के बा'द। एक मंज़र है अधूरे चाँद सा दिल में कहीं, और गहरा हो गया अंधेरा तमाम हो जाने के बा'द। ©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर
ज़ख़्म भरते ही नहीं इस दिल के हालातों के,
और बढ़ जाता है दर्द, आराम हो जाने के बा'द।

ख़्वाब टूटे हैं कई पलकों के दरवाज़े पे,
कुछ नहीं बचता कोई अंज़ाम हो जाने के बा'द।

रूह में जलती रहीं यादों की परछाइयाँ,

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