खामोशी ने डाले डेरे " ग्रहण लगा है चांद को मेरे, | हिंदी शायरी

"खामोशी ने डाले डेरे " ग्रहण लगा है चांद को मेरे, ख़ामोशी ने डाले डेरे, दूर-दूर तक नहीं रोशनी, पसरी है जैसे अंधेरे गहरे। सुर्ख़ होंठ पर पड़ी कालिमा ,मुस्कानों के पड़े हैं टोटे , भंवरों का जीना मुश्किल है, सांझ सवेरे फिरते रोते। ©Anuj Ray"

 खामोशी ने डाले डेरे "

ग्रहण लगा है चांद को मेरे, ख़ामोशी ने डाले डेरे,
दूर-दूर तक नहीं रोशनी, पसरी है जैसे अंधेरे गहरे।
 
सुर्ख़ होंठ पर पड़ी कालिमा ,मुस्कानों के पड़े हैं टोटे ,
 भंवरों का जीना मुश्किल है, सांझ सवेरे फिरते रोते।

©Anuj Ray

खामोशी ने डाले डेरे " ग्रहण लगा है चांद को मेरे, ख़ामोशी ने डाले डेरे, दूर-दूर तक नहीं रोशनी, पसरी है जैसे अंधेरे गहरे। सुर्ख़ होंठ पर पड़ी कालिमा ,मुस्कानों के पड़े हैं टोटे , भंवरों का जीना मुश्किल है, सांझ सवेरे फिरते रोते। ©Anuj Ray

# ख़ामोशी ने डाले डेरे "

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