#KisanDiwas सर्द हवाएं चल रही हैं , घोर कुहासा छाया है।
ठंड पड़ी है इतनी फिर भी, फावड़ा उसने उठाया है।।
वह फसल सीचनें निकल पड़ा है , ताल तलइया से।
चुभन ठंड की सहन कर रहा, दुर्बल छीण शरीरिया से।।
जैसे , तैसे ठंड गुजरे फिर गर्म हवाएं चलती हैं।
ग्रीष्म ऋतु की दोपहर में , कड़कड़ाती धूप बरसती हैं।।
अपनी माटी का चंदन करके,तीक्ष्ण व्यथाओं से गुजरे।
कभी बाढ़ , तो कभी ओले , कभी सूखे से गुजरे।।
इसी वेदना में जी कर वो ,सब को दाने खिलाता हैं।
सत् सत् नमन हैं उनकों , वो तो अन्नदाता हैं।।
#अन्नदाता
सर्द हवाएं चल रही हैं , घोर कुहासा छाया है।
ठंड पड़ी है इतनी फिर भी, फावड़ा उसने उठाया है।।
वह फसल सीचनें निकल पड़ा है , ताल तलइया से।
चुभन ठंड की सहन कर रहा, दुर्बल छीण शरीरिया से।।
जैसे , तैसे ठंड गुजरे फिर गर्म हवाएं चलती हैं।