मंजिल
मंजिलों की तलाश में भटकते हैं दर-ब-दर,
रास्तों की हर ठोकर का हमें हिसाब बाकी है।
काँटों की चुभन से हम यूँ न डरें कभी,
हर ज़ख्म पे मरहम का एक ख्वाब बाकी है।
ख़्वाब
ख़्वाबों का जाल है, पर हकीकत में धागे कमजोर,
हर ख़्वाब पूरा करने की अब भी चाहत बाकी है।
टूटते हैं रोज़, मगर चूर नहीं होते,
हर रात में सवेरा लाने की आदत बाकी है।
इश्क़
इश्क़ का ये सफर है, रास्ते भी अनजाने हैं,
उसके मिलने की उम्मीद अब भी बाकी है।
रूह की गहराईयों में जो उसकी याद बसी है,
उसे साँसों में समाने की मोहब्बत बाकी है।
जिंदगी
जिंदगी की गलियों में हर मोड़ एक इम्तिहान है,
हिम्मत से चलने की हममें ताकत बाकी है।
आँधियाँ आएँगी, चलेंगी, थम जाएँगी,
कदम बढ़ाने की हसरत बाकी है।
तन्हाई
तन्हाई की राहों में चुप्पी का कारवां संग है,
इस खामोशी में एक साज सुनना बाकी है।
किसी अजनबी की आवाज़ मिले कभी,
इस तन्हा सफर का हमसफर बाकी है।
©नवनीत ठाकुर
मंज़िल की तलाश अभी बाकी है