हया से लबरेज़ उसकी आँखें,
जैसे सावन में भरी हों शाखें।
नज़रें झुकीं, खामोशियां गहरी,
दिल की बातें जैसे हों ठहरी।
हर अल्फ़ाज़ में कुछ छिपा सा राज़,
मुस्कान में बसा हुआ था साज़।
उसके लम्स में था एहसास,
जैसे फिज़ाओं में हो मधुमास।
उसकी चाल में थी एक नरमी,
जैसे लहराती हो कोई सरगी।
आँखों की हया, चेहरे की नमी,
खामोशी में बसी एक नयी ज़मीं।
©आगाज़
#navratri haya amit pandey @Kumar Shaurya @aditi the writer @DASHARATH RANKAWAT SHAKTI