कोई मुकाम नहीं जिसे पा लूं इक रोज ये ताउम्र का सफर है मेरा,
मै तो महज एक पत्ता हूं इसकी शाख पर ये तो पूरा शजर है मेरा|
और इन नदियों,पहाड़ों रेतीले मैदानों से वाकिफ हूं मेरी गलियों की तरह ......
एक उम्र गुजरी है इस धरती पर ये भारत देश नहीं.... घर है मेरा||
©' मुसाफ़िर '
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