रंग (Colours) किसी पे चढ़ गया रंग प्रेम का, तो क | हिंदी Poetry

"रंग (Colours) किसी पे चढ़ गया रंग प्रेम का, तो कोई बैरागी बनकर घूमता, कोई खो गया दुनिया के रंगीनियों में, तो देखो, कोई सत्यवादी बनकर घूमता... कभी लाल, कभी नीला, कभी गुलाबी, कभी पीला, कभी बैंगनी, कभी भूरा, कभी नारंगी, कभी हरा, कभी खाकी, कभी धूसर, कभी स्यान, कभी सैलमन... ये रंग न जाने किस-किस को रंगीन करती, ये रंग न जाने कितनों को रंगहीन करती... कभी भाती है आँखों को, कभी मन इसे ओझल है करती... मानों सत्य से ऊपर है ये सभी, हमें ख़ुद में मिला जाती है... हमें सिखाती है तरसना अक्सर, ऐसे हीं खुद में घुला जाती है... ........... ©अपनी कलम से"

 रंग (Colours) 

किसी पे चढ़ गया रंग प्रेम का,
तो कोई बैरागी बनकर घूमता,
कोई खो गया दुनिया के रंगीनियों में,
तो देखो, कोई सत्यवादी बनकर घूमता... 

कभी लाल, कभी नीला,
कभी गुलाबी, कभी पीला,
कभी बैंगनी, कभी भूरा,
कभी नारंगी, कभी हरा,
कभी खाकी, कभी धूसर,
कभी स्यान, कभी सैलमन... 

ये रंग न जाने किस-किस को रंगीन करती,
ये रंग न जाने कितनों को रंगहीन करती...
कभी भाती है आँखों को,
कभी मन इसे ओझल है करती...
मानों सत्य से ऊपर है ये सभी,
हमें ख़ुद में मिला जाती है...
हमें सिखाती है तरसना अक्सर,
ऐसे हीं खुद में घुला जाती है... 





...........

©अपनी कलम से

रंग (Colours) किसी पे चढ़ गया रंग प्रेम का, तो कोई बैरागी बनकर घूमता, कोई खो गया दुनिया के रंगीनियों में, तो देखो, कोई सत्यवादी बनकर घूमता... कभी लाल, कभी नीला, कभी गुलाबी, कभी पीला, कभी बैंगनी, कभी भूरा, कभी नारंगी, कभी हरा, कभी खाकी, कभी धूसर, कभी स्यान, कभी सैलमन... ये रंग न जाने किस-किस को रंगीन करती, ये रंग न जाने कितनों को रंगहीन करती... कभी भाती है आँखों को, कभी मन इसे ओझल है करती... मानों सत्य से ऊपर है ये सभी, हमें ख़ुद में मिला जाती है... हमें सिखाती है तरसना अक्सर, ऐसे हीं खुद में घुला जाती है... ........... ©अपनी कलम से

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