ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय न हुए हज़ार बार र | हिंदी Shayari

"ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय न हुए हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले... ना रास्ता कहीं ठहरा, ना मंजिलें ठहरीं ये उम्र उड़ती हुई गर्द में गुज़ार चले.. ©Khan Sahab"

 ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय न हुए
हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले...

ना रास्ता कहीं ठहरा, ना मंजिलें ठहरीं
ये उम्र उड़ती हुई गर्द में गुज़ार चले..

©Khan Sahab

ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय न हुए हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले... ना रास्ता कहीं ठहरा, ना मंजिलें ठहरीं ये उम्र उड़ती हुई गर्द में गुज़ार चले.. ©Khan Sahab

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