White कितना गिरोगे और कितना संभाला जाए
घर को और कितने हिस्सों में बांटा जाए
अपने मां बाप को सोने का तख्त देने वालों
बता मेरे अपनो को घर से कैसे निकाला जाए
रिश्तों को रौंद डाला जीते जी खुदगर्जी में
उन आस्तीन के सांपों को कैसे पाला जाए
चंद लम्हात के खातिर भी बसर हो रहा मुश्किल
ज़िंदगी किस बिसात पर फिर यहां काट डाला जाए
खुशी का एक पल भी यहां किसी को गवारा नहीं
दिनों रात फिर कैसे मुंह में एक निवाला जाए
घर के ख़ुदाओं को तो रुलाया मिलकर सबने
बेफिजूल है, तू जाए मस्जिद या फिर अब शिवाला जाए
बेहतर है अंधेरा जिन्हें आंखे न मिली
ये देखना है तो फिर मेरे आंखों से भी उजाला जाए
मुझे वैसे भी किसी से उम्मीदें वफ़ा नहीं
चलो अपने मौत पर पत्थर खुद ही उछाला जाए
©अनुज
#sad_qoute