सामने मंज़िल थी और, सामने मंज़िल थी, और पीछे मेरा डर | हिंदी विचार

"सामने मंज़िल थी और, सामने मंज़िल थी, और पीछे मेरा डर था जो मुझसे लडकर मुझे नही हरा पाए उन्हें फिर से नूरा तुझसे हार जाने का डर था गिरते तो हंसने वाले भी अपने थे गिराने वाले भी अपने थे,, जो समझे नही थे मुझे क़भी मेरी कामियाबी में मुस्कुराने वाले भी मेरे अपने थे तोडक़र जो कभी मुझे छोड़ गए थे आज हाथ भड़ाने वाले भी वो लोग थे कामयाबियों की चाँदनी ऐसी ही होती है©अरुणाkp®"

 सामने मंज़िल थी और, सामने मंज़िल थी,
और पीछे मेरा डर था
जो मुझसे लडकर मुझे नही हरा पाए
उन्हें फिर से नूरा तुझसे हार जाने का डर था
गिरते तो हंसने वाले भी अपने थे
गिराने वाले भी अपने थे,,
जो समझे नही थे मुझे क़भी
मेरी कामियाबी में मुस्कुराने वाले भी मेरे अपने थे
तोडक़र जो कभी मुझे छोड़ गए थे
आज हाथ भड़ाने वाले भी वो लोग थे
कामयाबियों की चाँदनी ऐसी ही होती है©अरुणाkp®

सामने मंज़िल थी और, सामने मंज़िल थी, और पीछे मेरा डर था जो मुझसे लडकर मुझे नही हरा पाए उन्हें फिर से नूरा तुझसे हार जाने का डर था गिरते तो हंसने वाले भी अपने थे गिराने वाले भी अपने थे,, जो समझे नही थे मुझे क़भी मेरी कामियाबी में मुस्कुराने वाले भी मेरे अपने थे तोडक़र जो कभी मुझे छोड़ गए थे आज हाथ भड़ाने वाले भी वो लोग थे कामयाबियों की चाँदनी ऐसी ही होती है©अरुणाkp®

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