White ऐ जिंदगी तूभी मज़ाक करती है
मज़ा जीने का मेरे खराब करती है
कभी मोहब्बत में मुब्तिला करती है मुझे
कभी मोहब्बत को मेरे लिए अजाब करती है
नजाने क्या चाहती है ये जिंदगी मुझसे
नजाने कौन सा मुझसे हिसाब करती है
कभी रुलाती है बेपनाह मुझे ये जिंदगी
कभी हंसा कर उदास करती है
कभी लगाती है लत गुनाहों की
फिर जिंदगी बे नक़ाब करती है
ऐ जीने वालों जरा होशियार रहो
ये जिंदगी जीना हराम करती है
सांसे तो देती है ये जिंदगी मुझको
फिर उन्हीं सांसों को बेकरार करती है
कभी मिलेगी तो पूछूंगा उससे
ऐ जिंदगी तू क्यूं मज़ाक करती है
©Shoheb alam shayar jaipuri
#GoodNight शेरो शायरी