नेह शब्द से छूट चला अब
नही रही अंजन की मसि
पीछे रह गयी याद तुम्हारी
जाने मैं किस ओर चली
सूचित तुम्हे हो जीत तुम्हारी
पागल मन ने सुनना छोड़ा
कागज़ ने मुँह मोड़ लिया
आखर ने भी गुनना छोड़ा
कोरा कोरा सा मन मेरा
रिक्त शून्य ये लगता है
राह कोई शब्दों तक जाये
जान नहीं अब पड़ता है
कभी नहीं कविता में मैं थी
और ना ही थी मेरी जिंदगी
कविता से जीवन अपना था
जीवन की कविता न लिखी
©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य
©nehapriyadarshini