नेह शब्द से छूट चला अब नही रही अंजन की मसि पीछे रह | हिंदी कविता

"नेह शब्द से छूट चला अब नही रही अंजन की मसि पीछे रह गयी याद तुम्हारी जाने मैं किस ओर चली सूचित तुम्हे हो जीत तुम्हारी पागल मन ने सुनना छोड़ा कागज़ ने मुँह मोड़ लिया आखर ने भी गुनना छोड़ा कोरा कोरा सा मन मेरा रिक्त शून्य ये लगता है राह कोई शब्दों तक जाये जान नहीं अब पड़ता है कभी नहीं कविता में मैं थी और ना ही थी मेरी जिंदगी कविता से जीवन अपना था जीवन की कविता न लिखी ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य ©nehapriyadarshini "

 नेह शब्द से छूट चला अब
नही रही अंजन की मसि
पीछे रह गयी याद तुम्हारी
जाने मैं किस ओर चली

                                सूचित तुम्हे हो जीत तुम्हारी
                                 पागल मन ने सुनना छोड़ा
                                  कागज़ ने मुँह मोड़ लिया
                                 आखर ने भी गुनना छोड़ा

कोरा कोरा सा मन मेरा
रिक्त शून्य ये लगता है
राह कोई शब्दों तक जाये
जान नहीं अब पड़ता है

                                  कभी नहीं कविता में मैं थी
                                   और ना ही थी मेरी जिंदगी
                                                        कविता से जीवन अपना था                             
                                जीवन की कविता न लिखी   
 ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य                             
©nehapriyadarshini

नेह शब्द से छूट चला अब नही रही अंजन की मसि पीछे रह गयी याद तुम्हारी जाने मैं किस ओर चली सूचित तुम्हे हो जीत तुम्हारी पागल मन ने सुनना छोड़ा कागज़ ने मुँह मोड़ लिया आखर ने भी गुनना छोड़ा कोरा कोरा सा मन मेरा रिक्त शून्य ये लगता है राह कोई शब्दों तक जाये जान नहीं अब पड़ता है कभी नहीं कविता में मैं थी और ना ही थी मेरी जिंदगी कविता से जीवन अपना था जीवन की कविता न लिखी ©प्रियदर्शिनी शाण्डिल्य ©nehapriyadarshini

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