- कुण्डलिया - "क्रोध" --------------------------- | हिंदी कव

"- कुण्डलिया - "क्रोध" -------------------------------------------------- 1- क्रोधी को इस बात का, रहे न कोई बोध। क्षतिकारक होता सदा, जब भी आता क्रोध।। जब भी आता क्रोध, बुद्धि भी है चकराती। भले-बुरे की बात, ज़रा भी समझ न आती।। क्रोध मनुज का शत्रु, प्रगति का भी अवरोधी। तन-मन-धन सब नष्ट, स्वयं करता है क्रोधी।। 2- आता है जिस व्यक्ति को, बात-बात में क्रोध। संभावित नुकसान का, उसे न रहता बोध।। उसे न रहता बोध, क्रोध से बुद्धि नशाती। समझाइश की बात, समझ में उसे न आती।। अति क्रोधी इंसान, किसी को नहीं सुहाता। खो देता सुख-शांति, क्रोध जिसको भी आता।। - हरिओम श्रीवास्तव - ©Hariom Shrivastava"

 - कुण्डलिया -  "क्रोध"
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1-
क्रोधी को  इस बात का, रहे  न  कोई  बोध।
क्षतिकारक होता सदा, जब भी आता क्रोध।।
जब भी आता क्रोध, बुद्धि भी  है  चकराती।
भले-बुरे  की  बात, ज़रा भी समझ न आती।।
क्रोध मनुज का शत्रु, प्रगति का भी अवरोधी।
तन-मन-धन सब नष्ट, स्वयं  करता है  क्रोधी।।
2-
आता है जिस व्यक्ति को, बात-बात में क्रोध।
संभावित  नुकसान  का, उसे न रहता बोध।।
उसे न रहता बोध,  क्रोध  से  बुद्धि  नशाती।
समझाइश की बात, समझ में उसे न आती।।
अति क्रोधी इंसान, किसी  को  नहीं सुहाता।
खो देता सुख-शांति, क्रोध जिसको भी आता।।

- हरिओम श्रीवास्तव -

©Hariom Shrivastava

- कुण्डलिया - "क्रोध" -------------------------------------------------- 1- क्रोधी को इस बात का, रहे न कोई बोध। क्षतिकारक होता सदा, जब भी आता क्रोध।। जब भी आता क्रोध, बुद्धि भी है चकराती। भले-बुरे की बात, ज़रा भी समझ न आती।। क्रोध मनुज का शत्रु, प्रगति का भी अवरोधी। तन-मन-धन सब नष्ट, स्वयं करता है क्रोधी।। 2- आता है जिस व्यक्ति को, बात-बात में क्रोध। संभावित नुकसान का, उसे न रहता बोध।। उसे न रहता बोध, क्रोध से बुद्धि नशाती। समझाइश की बात, समझ में उसे न आती।। अति क्रोधी इंसान, किसी को नहीं सुहाता। खो देता सुख-शांति, क्रोध जिसको भी आता।। - हरिओम श्रीवास्तव - ©Hariom Shrivastava

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