जिसकी तलाश में अरसे से हैं,,, ना प्यार वो सच्चा मि | हिंदी कविता

"जिसकी तलाश में अरसे से हैं,,, ना प्यार वो सच्चा मिला, ना यार वो पक्का मिला,,, शायद आमाल ही मेरे अच्छे ना थे,,, इसलिए हमसफर भी वो नेक दामन ना मिला,,, ज़िक्र में उस रब के मसरूफ है,,, इबादत में उसके मशगूल है,,, कोई तो सज़दा कुबूल होगा बारगाह में उसके,,, के इलाही मुझे मेरे आसुओं का सिला अब तक ना मिला,,, हात दुआओं में,,,एक धुंधली सी तसवीर निगाहों में,,, के तलाश-ए-तस्वीर में पता उसका का अब तक ना मिला,,, ना तुम मिले,,,ना साथ तुम्हारा मिला,,, बात हो मुहब्बत की वो वक्त भी ना मिला,,, तुम्हे अपना कह सके ये हक भी अब तक ना मिला,,, इश्क़ ही शायद तकदीर में ना हो,,, लकीर तेरे नाम की हथेली पर ना हो,,, तू है और मै हु,,,फसाना इश्क़ का हमारा अब तक लिखा ना हो,,, और परेशा हु मैं इस बात से,,,कही नाराज़ तो नही तू मुझसे,,, यार मुझे तुझे समझने का मौका भी अब तक ना मिला,,,, ©Faiz Khan"

 जिसकी तलाश में अरसे से हैं,,,
ना प्यार वो सच्चा मिला, ना यार वो पक्का मिला,,,
शायद आमाल ही मेरे अच्छे ना थे,,,
इसलिए हमसफर भी वो नेक दामन ना मिला,,,

ज़िक्र में उस रब के मसरूफ है,,,
इबादत में उसके मशगूल है,,,
कोई तो सज़दा कुबूल होगा बारगाह में उसके,,,
के इलाही मुझे मेरे आसुओं का सिला अब तक ना मिला,,,

हात दुआओं में,,,एक धुंधली सी तसवीर निगाहों में,,,
के तलाश-ए-तस्वीर में पता उसका का अब तक ना मिला,,,

ना तुम मिले,,,ना साथ तुम्हारा मिला,,,
बात हो मुहब्बत की वो वक्त भी ना मिला,,,
तुम्हे अपना कह सके ये हक भी अब तक ना मिला,,,

इश्क़ ही शायद तकदीर में ना हो,,,
लकीर तेरे नाम की हथेली पर ना हो,,,
तू है और मै हु,,,फसाना इश्क़ का हमारा अब तक लिखा ना हो,,,

और परेशा हु मैं इस बात से,,,कही नाराज़ तो नही तू मुझसे,,,
यार मुझे तुझे समझने का मौका भी अब तक ना मिला,,,,

©Faiz Khan

जिसकी तलाश में अरसे से हैं,,, ना प्यार वो सच्चा मिला, ना यार वो पक्का मिला,,, शायद आमाल ही मेरे अच्छे ना थे,,, इसलिए हमसफर भी वो नेक दामन ना मिला,,, ज़िक्र में उस रब के मसरूफ है,,, इबादत में उसके मशगूल है,,, कोई तो सज़दा कुबूल होगा बारगाह में उसके,,, के इलाही मुझे मेरे आसुओं का सिला अब तक ना मिला,,, हात दुआओं में,,,एक धुंधली सी तसवीर निगाहों में,,, के तलाश-ए-तस्वीर में पता उसका का अब तक ना मिला,,, ना तुम मिले,,,ना साथ तुम्हारा मिला,,, बात हो मुहब्बत की वो वक्त भी ना मिला,,, तुम्हे अपना कह सके ये हक भी अब तक ना मिला,,, इश्क़ ही शायद तकदीर में ना हो,,, लकीर तेरे नाम की हथेली पर ना हो,,, तू है और मै हु,,,फसाना इश्क़ का हमारा अब तक लिखा ना हो,,, और परेशा हु मैं इस बात से,,,कही नाराज़ तो नही तू मुझसे,,, यार मुझे तुझे समझने का मौका भी अब तक ना मिला,,,, ©Faiz Khan

#holdinghands

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