साल आखिरी दिन था अपने सफर से घर कि ओर चल पड़ा था | हिंदी कविता

"साल आखिरी दिन था अपने सफर से घर कि ओर चल पड़ा था कि याकयक याद कोई आ गया सोचा उसके घर के सामने से जाना है देख लेता उसे मिल लेता उसे करीब से देख लेता साल कि आखिरी मुलाक़ात सोचता हुआ निकला मगर ये कैसे था संभव एकाएक दरवाजे से गुजरा मेरी बाइक रुक गयी वो भागी आयी बोली बोलिए!क्या कहता सो कहा आज़ आखिरी साल है कल बदल जायेगा तुम 2024 ही रहना बदलना नहीं यही कहना था हा मिलूंगा कल भी 2025मे थोड़ी निखरी निखरी बहकी बहकी मिली थी एक अभिवादन था जिसमें था हम वहीँ है और वहीँ पर ©ranjit Kumar rathour"

 साल आखिरी दिन था 
अपने सफर से घर कि ओर 
चल पड़ा था 
कि याकयक याद कोई आ गया 
सोचा उसके घर के सामने से जाना है 
देख लेता उसे 
मिल लेता उसे 
करीब से देख लेता 
साल कि आखिरी मुलाक़ात 
सोचता हुआ निकला 
मगर ये कैसे था संभव 
एकाएक दरवाजे से गुजरा 
मेरी बाइक रुक गयी
वो भागी आयी बोली 
बोलिए!क्या कहता 
सो कहा आज़ आखिरी साल है 
कल बदल जायेगा 
तुम 2024 ही रहना 
बदलना नहीं यही कहना था 
हा मिलूंगा कल भी 2025मे 
थोड़ी निखरी निखरी बहकी बहकी 
मिली थी एक अभिवादन था 
जिसमें था हम वहीँ है और वहीँ पर

©ranjit Kumar rathour

साल आखिरी दिन था अपने सफर से घर कि ओर चल पड़ा था कि याकयक याद कोई आ गया सोचा उसके घर के सामने से जाना है देख लेता उसे मिल लेता उसे करीब से देख लेता साल कि आखिरी मुलाक़ात सोचता हुआ निकला मगर ये कैसे था संभव एकाएक दरवाजे से गुजरा मेरी बाइक रुक गयी वो भागी आयी बोली बोलिए!क्या कहता सो कहा आज़ आखिरी साल है कल बदल जायेगा तुम 2024 ही रहना बदलना नहीं यही कहना था हा मिलूंगा कल भी 2025मे थोड़ी निखरी निखरी बहकी बहकी मिली थी एक अभिवादन था जिसमें था हम वहीँ है और वहीँ पर ©ranjit Kumar rathour

मै वहीँ और जगह वहीँ
(2024 का आखिरी din)

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