मण्डूक दोहे
पृथ्वी धारे तब हमें,काटें जब ना पेड़।
जान लीजिए सूत्र ये,प्राणों के यह मेंड़।।१
माने मेरी बात ये,उपयोगी उपहार।
देते खाना अरु दवा,रोपें वृक्ष हजार।।२
रोपें नित्य पेड़ एक,होता जो फलदार।
पुत्र जैसे ही मानें,सदा करे उपकार।।३
कहे धरा हमको यही,मानो मेरी बात।
वैरी सुन लो ना बनो ,नहीं करो आघात।४
मेटे जो खुद को यहाँ,हमको देते ठौर।
भूले न उनको छाँटें ,भोजन जो दे सौर।।५
इनसे ही होता यहाँ,सदा सुखी संसार।
शस्य-श्यामला हो धरा,हरियाली विस्तार।।६
©Bharat Bhushan pathak
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मण्डूक दोहे प्रथम प्रयत्न सादर समर्पित
विधान-दोहे वाली ही
विशेष-१८ मात्रा गुरु और १२ मात्रा लघु,इस प्रकार कुल ३० मात्रा अनिवार्य।