दिनांक 26/8/ 18
दिन. रविवार
नेह परस्पर नहीं अगर तो ,राखी केवल डोर।
होता वहीं अटूट नेह से ,वही सूत कमजोर।
नेह बिना राखी ले महँगी ,बाँधो जैसी चाह।
मन- मंजिल में मिलन कहाँ है , कंटक सारी राह।
पहले कंटक दूर करें फिर, बिछा नेह के फूल।
रिश्तों पर जो पड़ी हुई है, पोछें सारी धूल।
बिना प्यार रिश्तों की कीमत ,होती कितनी सोच।
बिन प्यार चिड़ियाँ भी परस्पर,नहीं मिलाती चोंच।
रिश्तों की कीमत तो तब है, सुख दुख में हो साथ।
नेह ,प्यार , श्रद्धा ,तो राखी, इन बिन बंधन हाथ।
#सुनील_गुप्ता केसला रोड सीतापुर
सरगुजा
©Sunil Gupta
#Yaari #राखी #सुनील