अपनी पहचान को मिटाना नहीं,
दरिया बन, समंदर में समाना नहीं।
फासलों में भी गहराई होती है,
नज़दीकी अक्सर तबाही लाती है।
किसी के कद से खुद को छोटा न कर,
अपनी मिट्टी से जुड़ रिश्ता तोड़ा न कर।
जो उड़ गए ऊँचाईयों की ओर,
उनके कदमों तले रह गई ज़मीन की डोर।
हर दरिया को समंदर की चाह नहीं होती,
हर मोती के लिए साज़िश राह नहीं होती।
ख़ुदी को बुलंद कर, गिरना मुमकिन है,
याद रख, उड़ान में भी गिरावट का दिन है।
जो दूर रहकर पास की बात करते हैं,
वो अपने मुकाम की बुनियाद रखते हैं।
©नवनीत ठाकुर
#नवनीतठाकुर अपने अंदर समंदर सा सुकून रख,
ऊपर से शांत, अंदर जुनून रख।
जो भीड़ के साथ चला, खो गया,
जो अलग रहा, खुदा जैसा हो गया।