"अक्सर ये इरादा करती हूॅं मैं कि,
दिल की हर बात,दिल का हर ख़याल लिख डालूॅं।
दिल को किसी ख़ाली बर्तन की तरह
बिलकुल ख़ाली कर डालूॅं।
लेकिन हर बार मेरा ये इरादा नाकाम हो जाता है।
ज़िंदगी में रोज़ कोई बात,कोई हादसा हो ही जाता है।
दिल फ़िर से बातों और ख़यालों से भर ही जाता है।
और दिल ख़ाली होने के बजाए और ज़्यादा...
अनकही बातों और ख़यालों के बोझ तले दब सा जाता है।
©Sh@kila Niy@z
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