अपने खिलाफ़ ' डाॅ . आशा सिंह सिकरवार
-------------------------------------'
चाहे जहाँ छिपाकर रख दो
वे पा लेंगे
चाहे रख दो आदिम नक्शा के भीतर
बना लेंगे सुरंग वे
आडी तिरछी लकीरें
बाहर से भीतर प्रवेश जहर
जिनकी जेबें खाली होती हैं
होती हैं उनकी भी जरूरतें
मन मारकर रह जाते हैं
अनिवार्यता और सुविधाओं के बीच
लकीर पर दम तोड़ती आधी आबादी
कई चीजों पर जोंक की तरह चिपक जाती हैं निगाहें
सपने में खुलती हैं जिनकी खिड़कियाँ
अंधेरे में भटकते हैं
टकराते हैं अपनी लाचारी, बेबसी पर
उनका भी मन डगमगाता है
आदर्शवादी भूमि पर
उनके भीतर जागती हैं अदम्य इच्छाएँ
डी ओ, जूते और नयी कमीज़
आँखों पर रंगीन चश्मा पहनकर
दुनिया की खूबसूरती
आँकने का
उनका भी अरमान होता है
डॉ .आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद ।
©Dr.asha Singh sikarwar
अपने खिलाफ़ ' डाॅ . आशा सिंह सिकरवार
-------------------------------------'
चाहे जहाँ छिपाकर रख दो
वे पा लेंगे
चाहे रख दो आदिम नक्शा के भीतर
बना लेंगे सुरंग वे