गाँठ हृदय की खोलूँ क्या..? सुन पाओ, तो बोलू क्या. | हिंदी लव

"गाँठ हृदय की खोलूँ क्या..? सुन पाओ, तो बोलू क्या..? ज़रूरी नहीं चुभे कोई बात.. तुम्हारा रूठकर बात न करना भी, मुझे चुभता है, दिन - रात. तुम तो जानते हो ना... अपने अंदर एक "अनकही कहानी" को, कितना मुश्किल है तुम्हारे होते हुए संभाले रखना जवानी को...! ©Matangi Upadhyay( चिंका )"

 गाँठ हृदय की खोलूँ क्या..? 
सुन पाओ, तो बोलू क्या..?
ज़रूरी नहीं चुभे कोई बात..
तुम्हारा रूठकर  बात न करना भी,
मुझे चुभता है, दिन - रात.
तुम तो जानते हो ना... 
अपने अंदर एक "अनकही कहानी" को, 
कितना मुश्किल है तुम्हारे होते हुए 
संभाले रखना जवानी को...!

©Matangi Upadhyay( चिंका )

गाँठ हृदय की खोलूँ क्या..? सुन पाओ, तो बोलू क्या..? ज़रूरी नहीं चुभे कोई बात.. तुम्हारा रूठकर बात न करना भी, मुझे चुभता है, दिन - रात. तुम तो जानते हो ना... अपने अंदर एक "अनकही कहानी" को, कितना मुश्किल है तुम्हारे होते हुए संभाले रखना जवानी को...! ©Matangi Upadhyay( चिंका )

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