आज व्यक्ति प्रगति के नाम पर सब कुछ छोड़ अपनों से अपनी सभ्यता संस्कृति से दूर होता जा रहा है एक समय ऐसा आता है जब आज समिति समय संसाधन जुटाकर बनाया अपना संसार उसे अधूरा सा लगने लगता है उसे समस्त बटोरी संपदा अपनों से साझा किए बगैर अर्थहीन ऐसी लगती लगती है इसके बाद वह अपने पीछे छूट गई धरती की ओर बढ़ता है परंतु एक बार अपनी जड़ों से कट जाने पर दोबारा जमने पर अपनों को लाचार पाता है अपनी प्रसन्नता बनाए रखने के लिए व्यक्ति को अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए
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अपनों से जुड़े रहना चाहिए