सोचा न था,
आजाद पंछी पिंजरे में
वीर भी झुक गया रण में
दिन छोटा और रात बढ़ गई
अलग सी दीवानगी चढ़ गई
सोचा न था कि गहरा असर कर जाओगी तुम
रग-रग में इस कदर समा जाओगी तुम
बेईमानी पर उतर आई है धड़कन
भीग गया पूर्णतया मेरा तन-मन
to be continue.....
©Trilok
#hands