White मन्नते मांगते मांगते मुकाम भी मिला तो दरिया | हिंदी कविता

"White मन्नते मांगते मांगते मुकाम भी मिला तो दरिया के किनारे। जहां ज्वार भाटा तो आम बात,पीने को मिलता है खारा पानी और सोते हैं रेत के सहारे। ना हरियाली ना खुशहाली फिर भी शीतलता मिलती है,जल कण के सहारे। कोई हमें पुकारे या ना पुकारे लेकिन, हर पल हमें पुकारती हैं समंदर से उठती ज्वारें। हमें हर रात लोरी गा गा कर सुलाती हैं,आकाश की टिमटिमाती तारें। कितने खुश नसीब हैं हम कि, हर सुबह हम जगते हैं सूरज के किरणों के सहारे। हम भूल भी जाएं अपनी चारों दिशाएं,तो हमें दिशाओं की याद दिलाती हैं,समंदर से उठती हवाएं। ©डॉ.अजय कुमार मिश्र"

 White मन्नते मांगते मांगते मुकाम भी मिला तो दरिया के किनारे।
जहां ज्वार भाटा तो आम बात,पीने को मिलता है खारा पानी और सोते हैं रेत के सहारे।
ना हरियाली ना खुशहाली फिर भी शीतलता मिलती है,जल कण के सहारे।
कोई हमें पुकारे या ना पुकारे लेकिन, हर पल हमें पुकारती हैं समंदर से उठती ज्वारें।
हमें हर रात लोरी गा गा कर सुलाती हैं,आकाश की टिमटिमाती तारें।
कितने खुश नसीब हैं हम कि, हर सुबह  हम जगते हैं सूरज के किरणों के सहारे।
हम भूल भी जाएं अपनी चारों दिशाएं,तो हमें दिशाओं की याद दिलाती हैं,समंदर से उठती हवाएं।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र

White मन्नते मांगते मांगते मुकाम भी मिला तो दरिया के किनारे। जहां ज्वार भाटा तो आम बात,पीने को मिलता है खारा पानी और सोते हैं रेत के सहारे। ना हरियाली ना खुशहाली फिर भी शीतलता मिलती है,जल कण के सहारे। कोई हमें पुकारे या ना पुकारे लेकिन, हर पल हमें पुकारती हैं समंदर से उठती ज्वारें। हमें हर रात लोरी गा गा कर सुलाती हैं,आकाश की टिमटिमाती तारें। कितने खुश नसीब हैं हम कि, हर सुबह हम जगते हैं सूरज के किरणों के सहारे। हम भूल भी जाएं अपनी चारों दिशाएं,तो हमें दिशाओं की याद दिलाती हैं,समंदर से उठती हवाएं। ©डॉ.अजय कुमार मिश्र

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