रचनाधर्मिता का अर्थ आज अनर्थ के साथ आविष्ट है
कच्ची पक्की कुछ भी लिखना लेखकीय धर्म मानते हैं
सृष्टि बीज की महक रचना ना अवशोषित करे
वैसी रचना को श्रेष्ठ लेखक बंजर भूमि मानते हैं
इधर शब्द उगे, मानस में उधर हलचल सी मच गई
मथानी ने हृदय मथा, प्रतिफल "प्रेम"को सब मानते हैं
शैलेश मटियानी के प्राक्कथन संवेदना के पर्याय बन गए
पांडेय बेचन शर्मा "उग्र"को सब कोई मानते हैं
पचास साठ साल बाद भी इन दोनों की रचना जीवित है
इसे ही रचनाधर्मिता निभाना लेखक मानते हैं।
©Rohini Singh
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