इतना ख़ामोश था मै कि,लोग सब सुन रहॆ थे...
सिर्फ़ एक गुल के लिए दो-चार चमन रहॆ थे..।
एक बिस्तर दो बदन को जला रहा था जब...
हम उस वक़्त भी रात-रात रूह पहन रहॆ थे..।
ये पहले से तय था कि,कोई नही आएगा...
किसी के इंतज़ार मॆं फ़क़त आदतन रहॆ थे..।
वो साँस तलक कितनी मौत मरा होगा ‘ख़ब्तुल’...
एक ही लाश थी और हजारों कफ़न रहॆ थे..।
- ख़ब्तुल
संदीप बडवाईक
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आदतन