मोहब्बत जब चरम पर होती है
तो नजर कहाँ धर्म पर होती है
जाति मजहब तो बस दिखावा है
कर्म तो, केवल जन की होती है
किसी के पहनावो में अब क्या फर्क करना
बात तो हया और शर्म की होती है
नफरती लोगों से कोई कहाँ पूछता है
बात तो केवल धर्म की होती है
अगर कोई ऊपर भी है तो कोई कहाँ ढूंढ पाया
आस्था की कहानी तो सारी भ्रम पर होती है
©Anil Vikrant(baal kavi)
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