जुगनू जुगनू जैसे हो तुम,
बोलो आखिर ऐसे कैसे हो तुम,,
कभी अंधेरा कभी रौशनी नहीं.
अंधेरों से निकली रौशनी हो तुम,,
बचपन की तरह फिर तुम्हे अपनी मुट्ठी मे भर लू,
कमलनदी बन ए जुगनू तेरे दिल मे घर लू,,
जुगनू बिलकुल जुगनू जैसे हो तुम,
बोलो आखिर ऐसे कैसे हो तुम,,
मै भी हु कही इसका अहसास दिलाया तुमने,
कभी अपनी पलकों,तो कभी अपनी बाहो मे सुलाया तुमने,,
जो मै अपनी मुट्ठी खोलू, तू सारे ख्वाब लिए उड़ता जाए,
मेरे चेहरे पर अपनी रौशनी सा मुस्कान बनकर खिलता जाए,,
जंगनू बिलकुल जुगनू जैसे हो तुम,
बोलो आखिर ऐसे कैसे हो तुम,,
©payal singh
#DiyaSalaai