White दिखती थी जिस मकान की खिड़की से वो कभी ताला ल | हिंदी शायरी

"White दिखती थी जिस मकान की खिड़की से वो कभी ताला लगा हुआ है आज उस मकान में मिलने से तुझसे पहले बहुत साफ लफ्ज़ थे तुझे देख कर आई है लुकनत ज़ुबान में सदाएं मोहब्बत की तुझे दी बहुत मगर आवाज क्यूं गई नहीं तेरे दिल के कान में मैं आज इस मुकाम पर बर्बाद हु मगर मेरी किसी दौर में बहुत थी मोहब्बत रुझान में आने से उसके पहले एक जुट थे हम सभी उसकी वजह से आया है फर्क खानदान में बोलने से तेरे अंदाजा हुआ मुझे तहज़ीब अब कुछ नहीं तेरी ज़ुबान महफ़िल में मेरी दोस्त तुम आए क्यूं नहीं पलके बिछी हुई थी तेरे एहतराम में ©Shoheb alam shayar jaipuri"

 White दिखती थी जिस मकान की खिड़की से वो कभी
ताला लगा हुआ है आज उस मकान में

मिलने से तुझसे पहले बहुत साफ लफ्ज़ थे
तुझे देख कर आई है लुकनत ज़ुबान में

सदाएं मोहब्बत की तुझे दी बहुत मगर
आवाज क्यूं गई नहीं तेरे दिल के कान में

मैं आज इस मुकाम पर बर्बाद हु मगर
मेरी किसी दौर में बहुत थी मोहब्बत रुझान में

आने से उसके पहले एक जुट थे हम सभी
उसकी वजह से आया है फर्क खानदान में

बोलने से तेरे अंदाजा हुआ मुझे
तहज़ीब अब कुछ नहीं तेरी ज़ुबान

महफ़िल में मेरी दोस्त तुम आए क्यूं नहीं
पलके बिछी हुई थी तेरे एहतराम में

©Shoheb alam shayar jaipuri

White दिखती थी जिस मकान की खिड़की से वो कभी ताला लगा हुआ है आज उस मकान में मिलने से तुझसे पहले बहुत साफ लफ्ज़ थे तुझे देख कर आई है लुकनत ज़ुबान में सदाएं मोहब्बत की तुझे दी बहुत मगर आवाज क्यूं गई नहीं तेरे दिल के कान में मैं आज इस मुकाम पर बर्बाद हु मगर मेरी किसी दौर में बहुत थी मोहब्बत रुझान में आने से उसके पहले एक जुट थे हम सभी उसकी वजह से आया है फर्क खानदान में बोलने से तेरे अंदाजा हुआ मुझे तहज़ीब अब कुछ नहीं तेरी ज़ुबान महफ़िल में मेरी दोस्त तुम आए क्यूं नहीं पलके बिछी हुई थी तेरे एहतराम में ©Shoheb alam shayar jaipuri

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