ख़्वाबों की गली में काफ़ी दूर चले आएं हैं, सुकून न | हिंदी शायरी

"ख़्वाबों की गली में काफ़ी दूर चले आएं हैं, सुकून न मिला.............जो इस गली तो, हक़ीक़त के चौराहे ख़ुद को छोड़ आएं हैं। दिल के टुकड़े...चांद से ज़्यादा रोशन, दोस्तों और रिश्तों को छोड़कर, इस बेगाने शहर चलें आएं हैं, सुकून न मिला......जो इस बेगाने शहर तो, अपने शहर को लौटने का इरादा कर आएं हैं।"

 ख़्वाबों की गली में काफ़ी दूर चले आएं हैं,
सुकून न मिला.............जो इस गली तो,
हक़ीक़त के चौराहे ख़ुद को छोड़ आएं हैं।

दिल के टुकड़े...चांद से ज़्यादा रोशन,
दोस्तों और रिश्तों को छोड़कर,
इस बेगाने शहर चलें आएं हैं,
सुकून न मिला......जो इस बेगाने शहर तो,
अपने शहर को लौटने का इरादा कर आएं हैं।

ख़्वाबों की गली में काफ़ी दूर चले आएं हैं, सुकून न मिला.............जो इस गली तो, हक़ीक़त के चौराहे ख़ुद को छोड़ आएं हैं। दिल के टुकड़े...चांद से ज़्यादा रोशन, दोस्तों और रिश्तों को छोड़कर, इस बेगाने शहर चलें आएं हैं, सुकून न मिला......जो इस बेगाने शहर तो, अपने शहर को लौटने का इरादा कर आएं हैं।

मेरा शहर

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