पलक झपकते
बोली बात बदल गयी
हम मयखाने में जब तक थे सब ठीक था,
बाहर आये तो जैसे बिसात बदल गयी!
यूँ तो रोज़ होता न था राबता मय से हमारा,
लबों से लगाया ही था और देखते ही देखते जमात बदल गयी!
कल मोहताज़ थे दो रोटी को आज ठुकरा रहे हों परसी थाली को,
क्या हुआ जनाब, पेट भरते ही औक़ात बदल गयी!
कल झुक कर सलामी देते थे, आज नज़रे मिला कर बात कर रहे हों,
पटेल का औहदा गिर गया या तुमसे हमारी मुलाकात बदल गयी!