मैं कैसे कह दूं,मोहब्बत नहीं है
जताया,बताया पर तोहमत वही है
की भरोसा है टूटा,भँवर में खड़े हम
किनारों के मुसाफिर की हक़ीक़त सही है
जो डूबे,डूब जाए,सज़ा हो जैसे उल्फ़त
वफ़ा की कश्ती, ग़नीमत बनी है
©paras Dlonelystar
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