उलझनें सुलझती नहीं नित रोज बढ़ती जाती है। शुकून मिल

"उलझनें सुलझती नहीं नित रोज बढ़ती जाती है। शुकून मिलता नहीं दिल को हर पल साँस घटती जाती है। शायर:-शैलेन्द्र सिंह यादव,कानपुर।"

 उलझनें सुलझती नहीं नित रोज बढ़ती जाती है।
शुकून मिलता नहीं दिल को हर पल साँस घटती जाती है।
शायर:-शैलेन्द्र सिंह यादव,कानपुर।

उलझनें सुलझती नहीं नित रोज बढ़ती जाती है। शुकून मिलता नहीं दिल को हर पल साँस घटती जाती है। शायर:-शैलेन्द्र सिंह यादव,कानपुर।

शैलेन्द्र सिंह यादव की शायरी।

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