जिस बात का डर था सोचा कल होगी, जरखेज जमीनों में ब | हिंदी शायरी

"जिस बात का डर था सोचा कल होगी, जरखेज जमीनों में बिभार फसल होगी। तफसील में जाने से ऐसा तो नही लगा, हालात के नक्शों में अब फेरबदल होगो। स्याही से इरादों की तस्वीर बनाते हो , गर ख़ूँ से तस्वीर बनाओ तो असल होगी। लफ्जो से निपट सकती तो कब की पट जाती, पेचीदा पहेली है बातो से न हल होगी। इन अंधक सुरंगों में बैठे है तो लगता है, बाहर भी अन्धेरे की बदशक्ल नकल होगी। जो वज्म में आये थे बोल नही सके, उन लोगो की हाथो में 'राज' की गजल होगी। ©Deepbodhi"

 जिस बात का डर था सोचा कल होगी,
जरखेज जमीनों में बिभार फसल होगी।

तफसील में जाने से ऐसा तो नही लगा,
हालात के नक्शों में अब फेरबदल होगो।

स्याही से इरादों की तस्वीर बनाते हो ,
गर ख़ूँ से तस्वीर बनाओ तो असल होगी।

लफ्जो से निपट सकती तो कब की पट जाती,
पेचीदा पहेली है बातो से न हल होगी।

इन अंधक सुरंगों में बैठे है तो लगता है,
बाहर भी अन्धेरे की बदशक्ल नकल होगी।

जो वज्म में आये थे बोल नही सके,
उन लोगो की हाथो में 'राज' की गजल होगी।

©Deepbodhi

जिस बात का डर था सोचा कल होगी, जरखेज जमीनों में बिभार फसल होगी। तफसील में जाने से ऐसा तो नही लगा, हालात के नक्शों में अब फेरबदल होगो। स्याही से इरादों की तस्वीर बनाते हो , गर ख़ूँ से तस्वीर बनाओ तो असल होगी। लफ्जो से निपट सकती तो कब की पट जाती, पेचीदा पहेली है बातो से न हल होगी। इन अंधक सुरंगों में बैठे है तो लगता है, बाहर भी अन्धेरे की बदशक्ल नकल होगी। जो वज्म में आये थे बोल नही सके, उन लोगो की हाथो में 'राज' की गजल होगी। ©Deepbodhi

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