हम गए थे मयखाने में कुछ, पीने के लिए,
दो वक़्त ज़िन्दगी के उल्फत से दूर, जीने के लिए,
फिर, जांप पे जाम गटके, अटकी तुझ पे नज़रें ऐसे की, तुझमें ही आ अटके।
फिर, नशा ऐसा चढ़ा तेरे हुस्न का कि, ढूंढ रहे हैं, इश्क़ के दर्जी को दिल, सीने के लिए।
हम गए थे मयखाने में कुछ पीने के लिए।
~हेमंत राय।
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