बहता सा नीर हूँ, ठहरना नहीं जानती। शांत कभी गंभीर

"बहता सा नीर हूँ, ठहरना नहीं जानती। शांत कभी गंभीर हूँ, सहना नहीं जानती । निर्मल कभी मलिन हूँ, छलना नहीं जानती। "

 बहता सा नीर हूँ, ठहरना नहीं जानती। 
शांत कभी गंभीर हूँ, सहना नहीं जानती ।
निर्मल कभी मलिन हूँ, छलना नहीं जानती।

बहता सा नीर हूँ, ठहरना नहीं जानती। शांत कभी गंभीर हूँ, सहना नहीं जानती । निर्मल कभी मलिन हूँ, छलना नहीं जानती।

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