आपको हास्य रचना सुनाता हूँ मैं।
आप बीती पुरुष की बताता हूँ मैं।।
भोर से उठके मैं ही सफाई करूँ
फिर रसोई में भोजन बनाता हूँ मैं
दर्द बेशक़ बदन ख़ूब मेरा करे
पाँव पत्नी का प्रतिदिन दबाता हूँ मैं
नींद आये उसे सुन के लोरी मेरी
दिन चढ़े बन अलारम उठाता हूँ मैं
डांट गुस्सा सदा मैं ही झेला मग़र
कहती दिन रात उसको सताता हूँ मैं
लात खाई बहुत मैंने माँ बाप का
मार पत्नी का अक्सर ही खाता हूँ मैं।
खैर ये तो लिखा है हँसाने को बस
प्रेम उससे बहुत ही जताता हूँ मैं ।।
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आपको हास्य रचना सुनाता हूँ मैं।
आप बीती पुरुष की बताता हूँ मैं।।
भोर से उठके मैं ही सफाई करूँ
फिर रसोई में भोजन बनाता हूँ मैं