प्यास भरी कैसी सागर में जो नदियों से बुझती कब ह | हिंदी शायरी

"प्यास भरी कैसी सागर में जो नदियों से बुझती कब है इतना खारा जल धरती पर मैं कैसे अब ला पाऊंगा सागर प्यासे नदियां मीठी व्याकुलता में सदियां बीती नभ भी सारे काले होते कालन्तर से बात अनूठी इतनी रोती आंखे से मैं आंसू कैसे हर पाऊंगा इतना खारा जल धरती पर मैं कैसे अब ला पाऊंगा ¢ डा• रामवीर गंगवार . ©Ramveer Gangwar"

 प्यास  भरी  कैसी  सागर में
जो नदियों से बुझती कब है
इतना खारा जल धरती पर
मैं  कैसे  अब  ला  पाऊंगा

सागर  प्यासे  नदियां मीठी
व्याकुलता में सदियां बीती
नभ  भी  सारे  काले  होते
कालन्तर  से  बात  अनूठी

इतनी  रोती  आंखे  से मैं
आंसू   कैसे   हर  पाऊंगा
इतना खारा जल धरती पर
मैं  कैसे  अब  ला पाऊंगा




¢ डा• रामवीर गंगवार


.

©Ramveer Gangwar

प्यास भरी कैसी सागर में जो नदियों से बुझती कब है इतना खारा जल धरती पर मैं कैसे अब ला पाऊंगा सागर प्यासे नदियां मीठी व्याकुलता में सदियां बीती नभ भी सारे काले होते कालन्तर से बात अनूठी इतनी रोती आंखे से मैं आंसू कैसे हर पाऊंगा इतना खारा जल धरती पर मैं कैसे अब ला पाऊंगा ¢ डा• रामवीर गंगवार . ©Ramveer Gangwar

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