White ज़मीर अगर जीना है इंसान बनकर, जो सोये ज़मीर | हिंदी मोटिवेशनल

"White ज़मीर अगर जीना है इंसान बनकर, जो सोये ज़मीर को जगाना होगा, कोई छू ना पाये आँचल को, अपनी शक्ति को आज़माना होगा, हर दिन टूटती है उम्मीद, हर दिन जिंदगी से लड़ना पड़ता है, कब तलक जियेंगें ज़िंदा लाश बनकर, अब भय को दूर भगाना होगा, रोज बिक रही है बाज़ारों में, जो नारी है महज़ खिलौना नहीं है, बहुत जी लिए मृततुल्य ज़मीर लिए, बस अब ना कोई बहाना होगा, अब नहीं बनना है सुर्खियाँ अखबारों की, अब रणभूमि में उतरना है, ये लड़ाई है अस्तित्व की, अब निज अस्तित्व बचाना होगा, करिश्मा, जानकी, मौमिता, वैष्णवी, निर्भया हो या फरज़ाना, जगा कर ज़मीर अपना, अब जीत का बिगुल बजाना होगा, अब नहीं पड़ना है कमजोऱ हमें, दोगला समाज भी ये जान ले, अब शक्ति स्वरूपा रणचंडी हैं, इस समाज को भी दिखाना होगा।। -पूनम आत्रेय ( स्वरचित ) ©poonam atrey"

 White ज़मीर 

अगर जीना है इंसान बनकर, जो सोये ज़मीर को जगाना होगा,
कोई छू ना पाये आँचल को, अपनी शक्ति को आज़माना होगा,

हर    दिन     टूटती है उम्मीद, हर दिन जिंदगी से लड़ना पड़ता है,
कब तलक जियेंगें ज़िंदा लाश बनकर, अब भय को दूर भगाना होगा,

रोज   बिक   रही   है बाज़ारों में, जो नारी है महज़ खिलौना नहीं है,
बहुत जी लिए मृततुल्य ज़मीर लिए, बस अब ना कोई बहाना होगा,

अब नहीं बनना है सुर्खियाँ अखबारों की, अब रणभूमि में उतरना है,
ये   लड़ाई    है   अस्तित्व की,   अब निज अस्तित्व बचाना होगा,

करिश्मा, जानकी, मौमिता, वैष्णवी, निर्भया     हो    या फरज़ाना,
जगा कर    ज़मीर  अपना,    अब जीत का बिगुल बजाना होगा,

अब नहीं पड़ना है   कमजोऱ हमें,   दोगला  समाज भी ये जान ले,
अब शक्ति स्वरूपा रणचंडी हैं, इस समाज को भी दिखाना होगा।।

-पूनम आत्रेय 
( स्वरचित )

©poonam atrey

White ज़मीर अगर जीना है इंसान बनकर, जो सोये ज़मीर को जगाना होगा, कोई छू ना पाये आँचल को, अपनी शक्ति को आज़माना होगा, हर दिन टूटती है उम्मीद, हर दिन जिंदगी से लड़ना पड़ता है, कब तलक जियेंगें ज़िंदा लाश बनकर, अब भय को दूर भगाना होगा, रोज बिक रही है बाज़ारों में, जो नारी है महज़ खिलौना नहीं है, बहुत जी लिए मृततुल्य ज़मीर लिए, बस अब ना कोई बहाना होगा, अब नहीं बनना है सुर्खियाँ अखबारों की, अब रणभूमि में उतरना है, ये लड़ाई है अस्तित्व की, अब निज अस्तित्व बचाना होगा, करिश्मा, जानकी, मौमिता, वैष्णवी, निर्भया हो या फरज़ाना, जगा कर ज़मीर अपना, अब जीत का बिगुल बजाना होगा, अब नहीं पड़ना है कमजोऱ हमें, दोगला समाज भी ये जान ले, अब शक्ति स्वरूपा रणचंडी हैं, इस समाज को भी दिखाना होगा।। -पूनम आत्रेय ( स्वरचित ) ©poonam atrey

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#नोजोटोहिंदी @Sunita Pathania अदनासा- प्रशांत की डायरी @Sethi Ji मनस्विनी

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